"आप त्यागी थे त्यागी बन कर चले गए ।
हम अनुरागी है , अनुरागी बनकर रह गए ॥ "
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जगमोहन जावलिया , भीलवाड़ा, (राज ०)
श्रद्धा सुमन
कविवर श्री त्यागी जी के निधन के समाचार ने मुझे झंझोर कर रख दिया उनके स्वर्ग रोहण की खबर ने मेरे ..आगे पढ़े चन्द्रपाल सिंह 'निरंकुश' जयपुर (राज ०)
सृजन के सजग प्रहरी को मेरा शत शत नमन !
त्यागमय जीवन पाकर वे, सृजन-पठन सदा करते रहे !
जबतक रहे इस धरा पर , औरों के लिए जीते रहे !! ..आगे पढ़े
भरत मिश्र प्राची, जयपुर (राज ०)
शहर संवेदना नहीं ओढ़ते
अख़बारों को बेच डालते हैं
आदमी संवेदना ढोता है
इसी से संक्रामक होता है
इसे पालने और पनपने दिया जाये तो
गज़ब ढा सकता है
पुरे के पुरे शहर को
आदमी बना सकता है
शहर, इसलिए सब कुछ सहते हैं
आदमी को नहीं सहते
जहाँ शहर रहते हैं
वहां आदमी नहीं रहते
- राजवीर त्यागी
कभी भरकर हुआ रीता,
रीत कर भी भरा है मन
तरीके से जिया होगा ,
सलीके से भरा है मन ।
कभी हार मैं शायद रहा सत्कार भी करता
मगर बनकर छुरा गर्दन पे भी आकर गिरा है मन ।
ना खिड़की है , ना दरवाजा , न रोशनदान है इसमें
कही होगा मकां शायद यहां तो मकबरा है मन ।
- राजवीर त्यागी